उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र अपने तय समय से अधिक चला। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने सदन में लंबे समय तक बैठ कर अपना पुराना रिकार्ड भी तोड़ दिया। सीएम पुष्कर सिंह धामी भी आक्रामक अंदाज में देर रात तक बोले। लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस सत्र ने वैमनस्यता बढ़ाई और शांत प्रदेश को आंदोलित कर दिया।
सदन के भीतर और बाहर से जो बातें छनकर बाहर गईं, वे राज्य के लोगों को हतप्रभ, परेशान और आंदोलित करने वाली रहीं। यह सत्र कुछ सवाल भी छोड़ गया। कम अवधि के सत्र को लेकर सरकार ने शुरुआत में ही कहना शुरू कर दिया था कि उसके पास ज्यादा बिजनेस नहीं है।
वहीं विपक्ष सत्र की अवधि बढ़ाए जाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाता रहा। लेकिन फिर सरकार ने सत्र की अवधि एक दिन बढ़ा दी। तीन दिन तक सत्र देर रात तक चलाया गया तो जाहिर है कि सरकार के पास इतना काम था, जिसके लिए कुछ और दिन तय हो सकते थे।
पड़ोसी राज्य हिमाचल भी उत्तराखंड की तरह छोटा राज्य है, वहां भी 68 सीटें हैं। दिल्ली राज्य भी इसी तरह की विधानसभा है। हिमाचल में 10 मार्च से बजट सत्र होने जा रहा है, जो 18 दिन चलेगा। हरियाणा राज्य का विधानसभा सत्र सात मार्च से शुरू होगा जो 10 से 11 दिन चलेगा। दिल्ली में भी बजट सत्र हमारे राज्य की विस से ज्यादा चलता है।लेकिन उत्तराखंड विधानसभा में बजट अभिभाषण और सामान्य बजट पर चर्चा के लिए सदस्यों को कितना समय मिला, यह सबके सामने हैं।
11 और विधेयक बिना किसी गंभीर चर्चा के पारित हो गए
सुविधाओं के अभाव के चलते फटाफट सत्र निपटाने की जल्दी गैरसैंण में तो समझी जा सकती है, लेकिन देहरादून में भी चर्चा के लिए सदस्यों के पास वक्त न होना चौंकाता है। जिस भू कानून के लिए राज्य के लोग, सरकार और विपक्ष के नेता लंबे समय से चर्चा करते रहे, वह विधेयक सदन में पेश होने पर सिर्फ 10 से 15 मिनट की चर्चा में पास हो गया। राज्यपाल के अभिभाषण और बजट अभिभाषण पर सामान्य चर्चा के लिए भी सदस्यों के पास ज्यादा बोलने के लिए नहीं था। विनियोग विधेयक को छोड़ दें तो बाकी 11 और विधेयक बिना किसी गंभीर चर्चा के पारित हो गए।
सत्र में संसदीय कार्यमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल और कांग्रेस विधायक मदन बिष्ट की निजी नोक-झोंक पर स्पीकर को उन्हें लगभग फटकारना पड़ा। कांग्रेस कार्यकर्ता अपने विधायकों से उम्मीद कर रहे थे कि वे भू-कानून से लेकर जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करेंगे और उनके मुद्दे उठाएंगे। लेकिन भरी दोपहरी में कंबल ओढ़कर और हाथों में हथकड़ी बांध कर उनके विरोध का अंदाज मीडिया का ध्यान तो खींच गया, मगर इसे स्टंटबाजी के तौर पर देखा गया।
अलबत्ता सदन के भीतर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य भूमिधरी, भ्रष्टाचार, शिक्षा के मुद्दे पर जरूर सरकार से भिड़ते दिखे, मगर कांग्रेस कार्यकर्ता अपने विधायकों से और ज्यादा आक्रामक होने की उम्मीद कर रहे थे। चार दिन तक सरकार पर आरोपों के तीर छोड़ने वाले विपक्ष पर सीएम धामी ने जवाबी हमले बोलकर हिसाब बराबर करने की कोशिश की। लेकिन प्रदेश की जनता का भरोसे जीतने के लिए 70 विधायकों को सदन के भीतर और गंभीरता से चर्चा करनी होगी। पांच दिन ही सही सत्र के संचालन पर लाखों रुपये खर्च हुए, लेकिन इसके बावजूद यह सत्र छाप नहीं छोड़ पाया।
विकसित उत्तराखंड के लिए सरकार ने संकल्प बनाए हैं। इनके लिए कई काम होने हैं। लेकिन जब तक इन संकल्पों और काम पर बहस नहीं होगी तब तक ये सारी बातें करना निरर्थक है। कई बार बिना चर्चा के बिल पास हो जाते हैं। सदन की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ जाती है। बजट अतिमहत्वपूर्ण है। नियम यह है कि सदन साल में 60 दिन चलना चाहिए, उत्तराखंड में यह 20 दिन भी नहीं चलता। यह चिंता की बात है।
– जय सिंह रावत, राजनीतिक मामले के जानकार व वरिष्ठ पत्रकार