अपने माता पिता के साथ मौजूद तैराक भव्या
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सोशल मीडिया की दुनिया में काफी समय से #पापा की परियां नाम से गलत ट्रेंड वायरल हो रहा है। इन ट्रोलर को हर दूसरे दिन बेटियां अपनी कामयाबी से आईना दिखाती रहती है। नेशनल गेम्स में भी पदक विजेता बेटियों ने उन्हें गलत साबित करके दिखाया है। अभी तो राष्ट्रीय खेलों के चार दिन ही बीते हैं और सिर्फ तैराकी में बेटियों के पदकों की संख्या 45 पहुंच गई है। ओवरऑल देखे तो यह संख्या 100 के करीब है। वैसे तो सभी बेटियां अपने पापा की परियां होती हैं लेकिन आज हम आपको दो ऐसी बेटियों से बात कराते हैं जिन्होंने अपने पापा के नक्शेकदम पर चलते हुए उनका नाम रोशन किया है।

अर्जुन अवार्डी पापा ने बनाया तैराक
38वें राष्ट्रीय खेलों में अभी तक दिल्ली की भव्या सचदेवा ने एक स्वर्ण पदक समेत तीन पदक जीत चुकी हैं। इनके पिता भानु सचदेवा अर्जुन अवार्ड प्राप्त तैराक हैं। मां बास्केटबाॅल प्लेयर रहीं हैं। 19 साल की भव्या ने बताया कि उन्होंने बास्केटबाल और टेनिस भी खेला था। लेकिन पिता के सही गाइडेंस से तैराकी में आगे बढ़ी। आठ साल की उम्र से भव्या से प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था। पिछले छह माह से भव्या बैंकाक में प्रशिक्षण ले रही हैं। अब वह एशियन गेम्स और ओलंपिक खेलों की तैयारी कर रही हैं।

पापा ने डूबने नहीं दिया और बन गई सफल डाइवर
महाराष्ट्र के सोलापुर निवासी ईशा ने डाइविंग में रजत पदक जीता है। बताया कि नौ साल से डाइविंग खेल रही हैं। पहले केवल तैराकी करती थी। कभी दुर्भाग्यवश पानी में डूब न जाऊं, बस इसलिए तैराकी सीखनी थी। पापा को डाइविंग के बारे में पता चला, उन्होंने ईशा को इसके लिए प्रेरित किया। ईशा ने बताया कि पापा ने डाइविंग के टॉप खिलाड़ियों के लिस्ट और उनके बारे में जानकारी जुटा ली। तब से डाइविंग का सफर शुरू हो गया। इससे पहले ईशा ने पिछले नेशनल गेम्स गोवा में स्वर्ण जीता था। साल 2006 में हुई साउथ एशियन एक्वाटिक्स चैंपियनशिप में अलग-अलग कैटेगरी में ईशा ने दो स्वर्ण पदक जीते थे।

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